18 Oct 2009

कबीरदास


जीवन परिचय


महात्मा कबीर का जन्म-काल

महात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था। भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्थाएँ सोचनीय हो गयी थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धमार्ंधता से जनता त्राहि- त्राहि कर रही थी और दूसरी तरफ हिंदूओं के कर्मकांडों, विधानों एवं पाखंडों से धर्म- बल का ह्रास हो रहा था। जनता के भीतर भक्ति- भावनाओं का सम्यक प्रचार नहीं हो रहा था। सिद्धों के पाखंडपूर्ण वचन, समाज में वासना को प्रश्रय दे रहे थे।

नाथपंथियों के अलखनिरंजन में लोगों का ऋदय रम नहीं रहा था। ज्ञान और भक्ति दोनों तत्व केवल ऊपर के कुछ धनी- मनी, पढ़े- लिखे की बपौती के रुप में दिखाई दे रहा था। ऐसे नाजुक समय में एक बड़े एवं भारी समन्वयकारी महात्मा की आवश्यकता समाज को थी, जो राम और रहीम के नाम पर आज्ञानतावश लड़ने वाले लोगों को सच्चा रास्ता दिखा सके। ऐसे ही संघर्ष के समय में, मस्तमौला कबीर का प्रार्दुभाव हुआ।

जन्म

महात्मा कबीर के जन्म के विषय में भिन्न- भिन्न मत हैं। "कबीर कसौटी' में इनका जन्म संवत् १४५५ दिया गया है। ""भक्ति- सुधा- बिंदु- स्वाद'' में इनका जन्मकाल संवत् १४५१ से संवत् १५५२ के बीच माना गया है। ""कबीर- चरित्र- बाँध'' में इसकी चर्चा कुछ इस तरह की गई है, संवत् चौदह सौ पचपन (१४५५) विक्रमी ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा सोमवार के दिन, एक प्रकाश रुप में सत्य पुरुष काशी के "लहर तारा'' (लहर तालाब) में उतरे। उस समय पृथ्वी और आकाश प्रकाशित हो गया। समस्त तालाब प्रकाश से जगमगा गया। हर तरफ प्रकाश- ही- प्रकाश दिखने लगा, फिर वह प्रकाश तालाब में ठहर गया। उस समय तालाब पर बैठे अष्टानंद वैष्णव आश्चर्यमय प्रकाश को देखकर आश्चर्य- चकित हो गये। लहर तालाब में महा- ज्योति फैल चुकी थी। अष्टानंद जी ने यह सारी बातें स्वामी रामानंद जी को बतलायी, तो स्वामी जी ने कहा की वह प्रकाश एक ऐसा प्रकाश है, जिसका फल शीघ्र ही तुमको देखने और सुनने को मिलेगा तथा देखना, उसकी धूम मच जाएगी।

एक दिन वह प्रकाश एक बालक के रुप में जल के ऊपर कमल- पुष्पों पर बच्चे के रुप में पाँव फेंकने लगा। इस प्रकार यह पुस्तक कबीर के जन्म की चर्चा इस प्रकार करता है :-

""चौदह सौ पचपन गये, चंद्रवार, एक ठाट ठये।
जेठ सुदी बरसायत को पूनरमासी प्रकट भये।।''

जन्म स्थान

कबीर ने अपने को काशी का जुलाहा कहा है। कबीर पंथी के अनुसार उनका निवास स्थान काशी था। बाद में, कबीर एक समय काशी छोड़कर मगहर चले गए थे। ऐसा वह स्वयं कहते हैं :-

""सकल जनम शिवपुरी गंवाया।
मरती बार मगहर उठि आया।।''

कहा जाता है कि कबीर का पूरा जीवन काशी में ही गुजरा, लेकिन वह मरने के समय मगहर चले गए थे। कबीर वहाँ जाकर दु:खी थे। वह न चाहकर भी, मगहर गए थे।

""अबकहु राम कवन गति मोरी।
तजीले बनारस मति भई मोरी।।''

कहा जाता है कि कबीर के शत्रुओं ने उनको मगहर जाने के लिए मजबूर किया था। वह चाहते थे कि आपकी मुक्ति न हो पाए, परंतु कबीर तो काशी मरन से नहीं, राम की भक्ति से मुक्ति पाना चाहते थे :-

""जौ काशी तन तजै कबीरा
तो रामै कौन निहोटा।''

कबीर के माता- पिता

कबीर के माता- पिता के विषय में भी एक राय निश्चित नहीं है। "नीमा' और "नीरु' की कोख से यह अनुपम ज्योति पैदा हुई थी, या लहर तालाब के समीप विधवा ब्राह्मणी की पाप- संतान के रुप में आकर यह पतितपावन हुए थे, ठीक तरह से कहा नहीं जा सकता है। कई मत यह है कि नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। एक किवदंती के अनुसार कबीर को एक विधवा ब्राह्मणी का पुत्र बताया जाता है, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था।

एक जगह कबीर ने कहा है :-

"जाति जुलाहा नाम कबीरा
बनि बनि फिरो उदासी।'

कबीर के एक पद से प्रतीत होता है कि वे अपनी माता की मृत्यु से बहुत दु:खी हुए थे। उनके पिता ने उनको बहुत सुख दिया था। वह एक जगह कहते हैं कि उसके पिता बहुत "गुसाई' थे। ग्रंथ साहब के एक पद से विदित होता है कि कबीर अपने वयनकार्य की उपेक्षा करके हरिनाम के रस में ही लीन रहते थे। उनकी माता को नित्य कोश घड़ा लेकर लीपना पड़ता था। जबसे कबीर ने माला ली थी, उसकी माता को कभी सुख नहीं मिला। इस कारण वह बहुत खीज गई थी। इससे यह बात सामने आती है कि उनकी भक्ति एवं संत- संस्कार के कारण उनकी माता को कष्ट था।

स्री और संतान

कबीर का विवाह वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या "लोई' के साथ हुआ था। कबीर को कमाल और कमाली नाम की दो संतान भी थी। ग्रंथ साहब के एक श्लोक से विदित होता है कि कबीर का पुत्र कमाल उनके मत का विरोधी था।

बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।

कबीर की पुत्री कमाली का उल्लेख उनकी बानियों में कहीं नहीं मिलता है। कहा जाता है कि कबीर के घर में रात- दिन मुडियों का जमघट रहने से बच्चों को रोटी तक मिलना कठिन हो गया था। इस कारण से कबीर की पत्नी झुंझला उठती थी। एक जगह कबीर उसको समझाते हैं :-

सुनि अंघली लोई बंपीर।
इन मुड़ियन भजि सरन कबीर।।

जबकि कबीर को कबीर पंथ में, बाल- ब्रह्मचारी और विराणी माना जाता है। इस पंथ के अनुसार कामात्य उसका शिष्य था और कमाली तथा लोई उनकी शिष्या। लोई शब्द का प्रयोग कबीर ने एक जगह कंबल के रुप में भी किया है। वस्तुतः कबीर की पत्नी और संतान दोनों थे। एक जगह लोई को पुकार कर कबीर कहते हैं :-

"कहत कबीर सुनहु रे लोई।
हरि बिन राखन हार न कोई।।'

यह हो सकता हो कि पहले लोई पत्नी होगी, बाद में कबीर ने इसे शिष्या बना लिया हो। उन्होंने स्पष्ट कहा है :-

""नारी तो हम भी करी, पाया नहीं विचार।
जब जानी तब परिहरि, नारी महा विकार।।''


8 comments:

  1. Anusha pemmaraju3 November 2009 at 06:43

    Thanks for the information & also give more information on other saints also.

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  2. congradulations


    madhusoodhanan pillai
    ghss mankara

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  3. congratulations.


    it's very good and useful for the hindi teachers to collect points........


    K MOIDEEN
    HSA HINDI
    GHSS KUNISSERY
    07 11 2009 17:45

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  4. very clear explanation

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  5. It is so nice......

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  6. hadnt he slept with a bitch ?

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  7. very useful info...thnxx

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